हिंदी फिल्मों में सबसे बोल्ड एंड
ब्यूटीफुल हिरोइन्स की अगर लिस्ट बनायीं जाये तो उस लिस्ट में आप सबसे पहले किसका
नाम लिखेंगे? हिरोइन्स
में इमरान हाश्मी कहलाने वाली विद्या बालन का या फिर बोंगशैल बिपाशा बासु का या हो
सकता है कि आप इस लिस्ट की शुरुआत हरियाणवी बाला मल्लिका शेरावत के नाम से करें.
लेकिन फिल्मों के इतिहासकरों को अगर ये लिस्ट बनानी पड़े तो वो इस लिस्ट की शुरुआत
हिंदी फिल्मों की सबसे पहली बोल्ड, बेबाक, बिंदास हीरोइन देविका रानी के नामसे करेंगे. नोबल पुरस्कार से सम्मानित कवि श्री रविन्द्रनाथ टैगोर की भतीजी देविका अपने युग से कहीं आगे की सोच रखने वाली एक्टर थीं. हिंदी फिल्मों की पहली स्वप्न सुंदरी और
ड्रैगन लेडी कहलाने वाली देविका ने 1933 में बनी फिल्म “कर्मा”
में “कीसिंग”
सीन देकर जैसे ज़माने की नीव हिला के रख दी थी, ये वो दौर था
जिस जब भारत की महिलायें घर
की चारदीवारी के भीतर भी घूंघट
में मुँह छुपाये रहती थीं. पद्मश्री और दादा साहेब फाल्के अवार्डधारी देविका
और
उनके पति हिमांशु राय के बीच
फिल्माए गए इस चार मिनट लंबे किसिंग सीन को आज भी इन्डियन फिल्म हिस्ट्री में सबसे लंबे कीसिंग सीन का दर्जा हासिल है।
देविका की देखा-देखी “ट्रेजेडी-क्वीन” मीनाकुमारी ने भी फिल्म “फुटपाथ”
में उस ज़माने के हिसाब से काफी बोल्ड सीन दिए, उसके बाद फिल्म “आवारा”
में नर्गिस, "दिल्ली का ठग" में
नूतन, फिल्म "अपराध" में मुमताज़ और "एन इवेनिंग इन पेरिस" में शर्मीला टैगोर ने टू-पीस
बिकनी की मशाल जला के ना जाने कितने महिला मुक्ति मोर्चे वालों की नींद हराम कर दी
थी. ये उस दौर की नारियों का दुस्साहस था जब फिल्मों में हीरोइन का काम किसी डेली
सोप्स की फीमेल प्रोटेगोनिसट की तरह ६ गज़ लंबी साड़ी के पल्लू से आंसू पोंछने से
ज़्यादा कुछ नहीं होता था. लेकिन आज रील और रियल लाइफ दोनों जगह हालत बदल चुके
हैं.
आज जबकि रियल लाइफ में भी लड़कियों का “फिज़िकल एक्स्पोज़र” स्टेटस सिम्बल या
मोर्डनिज्म का सीनोंनीम बन चुका है तो ऐसे में फ़िल्मी अप्सराओं का कम कपड़ों में
दिखाई देने पर ना तो किसी महिला मुक्ति मोर्चे के पेट में दर्द होता है और ना ही
फिल्म क्रिटिक ही अब इस बात पर कोई खास तवज्जो देते हैं. लेकिन इन बदले हालत में
नई पौध की हीरोइनो के सामने सबसे बड़ी चुनौती है रातों रात लोकप्रिय बनाने का कोई
खासा-म्-खास फोर्मुला ढूंडना. क्योंकि अगर लोकप्रियता हासिल करने के सपने को महज़
एक्टिंग और टेलेंट के भरोसे छोड़ा गाया तो एक ना एक दिन खुद को यही समझाना पड़ेगा
कि “बालिके – ना नौ मन तेल होगा और ना राधा नाचेगी”.
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