Thursday, October 10, 2013

फ़िल्मी दुनिया, दिल और दर्द...

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री यानि मायानगरी के बारे में हर कोई लिखना, पढ़ना और सुनना चाहता है. लेकिन इस इंडस्ट्री और इसके लोगों के बारें में जो भी लिखा, कहाँ, सुना या न्यूज़ में दिखाया जाता है उसे देख के तो लगता है मानो मायानगरी के लोगों का प्यार, इमोशंस, परिवार, संस्कारों से कभी कोई वास्ता ही न पड़ा हो या फिर शायद ये किसी ऐसी दुनिया के लोग हैं जहाँ रिश्तों की बुनियाद पैसा, नाम, और शोहरत के दम पर ही रखी जाती है. लेकिन अगर गौर से देखें तो फिल्म इंडस्ट्री के लोगों की खुशियाँ और गम भी हमारे ही जैसे हैं. यहाँ के लोगों की ज़िंदगी भी प्यार, परिवार, और दुःख-सुख के ताने-बाने में उतनी ही उलझी हुई है जितनी की गैर-फ़िल्मी लोगों की. फर्क सिर्फ इतना है कि हमने इन लोगों के प्रोफेशन की ही तरह ही इनकी पर्सनल लाइफ को भी महज़ एंटरटेनमेंट या टाइम पास का एक जरिया समझ लिया है. जबकि इस इंडस्ट्री में गिने-चुने ही सही लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें किस्मत और हालत ने कई बार चुनौतियों के भंवर में फंसाया लेकिन इन लोगों ने किस्मत के आगे घुटने टेकने की बजाये उस भंवर से बाहर निलने का रास्ता ढूंडा और एक नई मिसाल कायम की.
आमिर खान और किरण राव : बेऔलाद लोगों को दिखाई सरोगेसीकी राह
सिलसिले की शुरुआत करते हैं आमिर खान और उनकी पत्नी किरण राव से, जोकि मेडिकल प्रोब्लम्स की वजह से चाह कर भी अपने परिवार को आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे. शादी के पांच साल बाद भी जब किरण की गोद भरने की कोई उम्मीद दिखाई नहीं दी तो ऐसे में आमिर ने मेडिकल साइंस का सहारा लिया और सरोगेसी के ज़रिये अपने परिवार को आगे बढ़ाने का बोल्ड डिसीज़न लिया. आमिर के इस फैसले के कारण ही पिछले दिनों उनके परिवार में एक नए मेहमान आज़ाद राव खानकी एंट्री हुई. लंबे इतंजार और कुछ मुश्किलों के बाद पैदा हुए आज़ादका जन्म उन सब कपल्स के लिए एक मिसाल और आशा की उस किरण की तरह है जो दुनिया या समाज के डर से साइंस के इस चमत्कार को चाह कर भी नहीं अपना पा रहे होंगे.
सलमान खान की फैमिली अनेकता में एकता की मिसाल 
फ़िल्मी दुनिया में अनेकता में एकता की मिसाल ढूंडना कोई खास मशकत का काम नहीं है. क्योंकि
सबकी शान, सबकी आन सलमान खान की फॅमिली एक ऐसा ही गुलदस्ता है जहाँ कई धर्म के फूल एक ही घर में महकते दिखाई देंगे. ये परिवार जिस शिद्दत और सलीके से ईद मनाता है उतनी ही जोश और आदर के साथ यहाँ गणेश चतुर्थी और दीवाली भी मनाई जाति है. यही नहीं बल्कि सलीम खान ने तो कई कदम आगे बढ़ते हुए अपनी खुद की एक बेटी अलवीरा होने के बावजूद एक और बेटी अर्पिता को गोद लेकर ये साबित किया कि फ़िल्मी दुनिया के लोगों के पास भी दिल है एक ऐसा दिल जो गैरों के दुःख-दर्द को भी अपना बना लेता है.
शम्मी कपूर की दूसरी पत्नी नीला देवी ममता और त्याग की बेजोड़ मिसाल
अपने ज़माने की नम्बर वन एक्टर गीता बाली ने अपने प्यार की खातिर नेम, फेम, पैसा इन सबको ताक पर रख कर शम्मी कपूर से शादी की थी. शम्मी से शादी के बाद गीता ने दो बच्चों आदित्य राज कपूर और कंचन को जन्म दिया. दोनों बच्चे अभी काफी छोटे थे कि चेचक की बीमारी के कारण गीता बाली इस दुनिया से चल बसीं. गीता की मौत का सदमा और दो छोटे बच्चों की परवरिश की ज़िम्मेदारी के कारण शम्मी ने अपने करियर और सेहत दोनों को नज़रअंदाज़ करना शुरू कर दिया. ऐसे में घर वालों ने उनपर दूसरी शादी का दबाव डाला. अपने बच्चों की खातिर शम्मी ने भावनगर, रॉयल फैमिली की नीला देवी से शादी केलिए हाँ तो कह दी लेकिन साथ ही उन्होंने नीला के सामने ये शर्त भी रखी कि उन्हें सारी ज़िंदगी गीता के बच्चों को ही अपने बच्चे मानना होगा. शम्मी की इस शर्त को नीला देवी ने न सिर्फ खुशी-खुशी एक्सेप्ट किया बल्कि प्यार, त्याग और ममता की ऐसी मिसाल कायम की जिसका उदाहरण आम ज़िंदगी में भी मुश्किल से ही देखने को मिलता है.
मुमताज़ केंसर से ली टक्कर
किसी ज़माने में अपनी चमकती बिंदिया और खनकती चूडियों से लाखों की नींद उड़ाने वाली मुमताज ने ब्रिटिशवासी मयूर वाधवानी से शादी के बाद फिल्मों से नाता तोड़ लिया. मायानगरी से दूर अपनी छोटी सी फैमिली में खुश मुमताज़ को कुछ साल पहले कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी ने आ घेरा. इस बीमारी के कारण रेडिएशन और कीमोथैरेपी जैसी दर्दनाक तकलीफों से गुज़रने के साथ-साथ मुमताज़ को काफी समय तक बिना बालों का सिर लिए दुनिया का सामना करना पड़ा. लेकिन अपनी हिम्मत और आत्मविश्वास के दम पर मुमताज़ ने इस बीमारी को मात दे कर ये साबित किया कि 'कैंसर एक लाइलाज बीमारी नहीं है और कैंसर का मतलब हमेशा सिर्फ मौत ही नहीं होता”.
सुरैया : परिवार की खातिर प्यार की कुर्बानी
हिंदी फिल्म सितारों के रीयल लाइफ रोमांस की दास्तान जब भी लिखी जायेगी तो उसमें सुरैया का नाम सुनहरी अक्षरों में सबसे ऊपर चमकता दिखाई देगा. कहते हैं की सुरैय्या की नानी उन्हें महज़ एक नोट छापने की मशीन समझती थी. वो नहीं चाहती थी कि सुरैय्या कभी शादी करे. अपनी नानी की जिद्द की खातिर सुरैय्या ने अपने पहले और आखिरी प्यार देव आनंद की कुर्बानी दे दी. और फिर जब तक सुरैया की उम्र शादी के लायक थी तबतक उन पर नानी का हुकुम चलता रहा और जब उनकी नानी का साया सिर से उठा तब तक देव आनंद शादी कर चुके थे।
अपने टूटे हुए दिल के टुकड़ों को फिर से जोड़ कर देव साहब ने बेशक कुछ समय बाद अपना घर बसा लिया हो लेकिन सुरैय्या उम्रभर देव साहब के नाम की माला जपते हुए कुंवारी ही रही.

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