Wednesday, October 09, 2013

माई कॉफ़ी विद करण

टेलिविज़न के लिए शो बनाते हुए कई बार ऐसे अनुभव होते हैं जो ज़िन्दगी भर या तो एक याद बन जाते हैं या एक सबक.कुछ ऐसा ही हुआ जब मैं ""ज़ूम टीवी" के एक शो "मैं हूँ.." पर बतौर सह-निर्माता काम कर रही थी. "मैं हूँ.." एक अलग तरह का शो था. खास तौर पर तब जबकि इस शो के द्वारा हम फिल्मी सितारों को नही बल्कि उनके फिल्मी जन्मदाताओं यानि स्टार मकेर्स से दर्शकों का परिचय करवाते थे. एक आम इंसान से लोकप्रियता के आसमान का चमकता सितारा बनने के सफर में जिन लोगों का योगदान रहा बस उन्ही के जीवन का सफर था ये शो "मैं हूँ..".

मैं काम कर रही थी मशहूर फोटो जर्नलिस्ट "स्वर्गीय गौतम राजाध्यक्ष" के एपीसोड पर. इसी सिलसिले में मुझे करण जोहर से मिलने का अवसर मिला. हालाँकि बतौर पत्रकार करण से मेरी मुलाकात दिल्ली में काफी दफा हो चुकी थी. मगर ये एक खास मौका था जब अपनी कैमरा टीम के साथ करण के घर पर उनका इंटरव्यू लेने पहुँची. फ़ोन पर इंटरव्यू का समय निर्धारित करत वक्त ही करण ने मुझे आगाह किया था की वो 20-25 मिनट से ज़्यादा बात करने का वक्त नही दे सकेंगे.
कोई बात नही वैसे भी काजोल, सलमान, महिमा, जया बच्चन, शबाना जैसे कई और सितारे भी बेताब थे काम के दौरान गौतम के साथ हुए अपने-अपने अनुभव हमें बताने केलिए. निर्धारित समय पर मैं अपनी कैमरा टीम के साथ करण के घर पहुँची. करण ने हमें ड्राइंग रूम में कैमरा सेट सैट करने को कहा और ख़ुद तैयार होने केलिए १० मिनट का समय माँगा. सब सही चल रहा था और मैं इंतज़ार कर रही थी की कैमरामैन फ्रेम रेडी कर मुझे एक बार देखने केलिए बुलाएगा. मगर कैमरामैन का चेहरा कुछ और ही कहानी कह रहा था कि हो न हो कहीं कुछ गड़बड़ है. मैंने पास जाकर पूछा तो उसने बताया कि कैमरे के सारे कलर्स गायब हैं. अब इस कैमरे पर जो भी शूट होगा वो ब्लैक एंड व्हाइट ही दिखाई देगा. यानि करण के साथ इंटरव्यू नही हो सकता. जिसका सीधा सा मतलब था कि ये एपिसोड अपने तय शुदा समय पर नहीं दिखाया जा सकता. उधर करण बार-बार अपने नौकर को भेज रहे थे ये जानने के लिए कि हमलोग तैयार हैं या नही. मेरी समझ में कुछ नही रहा था कि इस परिस्थिति को कैसे संभाला जाए. अब मेरे पास दो ही रास्ते थे एक ये कि मैं करण से झूठ बोलूं और इंटरव्यू लेकर उस टेप को कचरा पेटी में दाल दूँ. दूसरा रास्ता ये था कि मैं करण को सच बता दूँ. मगर दुसरे रास्ते पर चलने का अंजाम ये भी हो सकता था कि भविष्य में करण कभी भी मेरा सामना करने से कतराते क्योंकि काफी व्यस्त होने के बावजूद उन्होंने इस इंटरव्यू केलिए वक्त निकला था. कैमरे के साथ साथ अब मेरे चेहरे के भी रंग उड़ने लगे थे. खैर मैंने आनन-फानन में एक निर्णय लिया और कैमरामैन को दूसरा कैमरा मंगवाने को कहा और ख़ुद करण के पास जा कर उन्हें सब सच बता दिया. साथ ही ये भी कहा कि मैं आपसे झूठ भी बोल सकती थी मगर आज मुझे सच बोलने का परिणाम देखना है. करण ने मेरे ये आखरी शब्द गौर से सुने. और मुझसे एक सवाल किया कि “दूसरा कैमरा आने में कितना वक्त लगेगा?” मेरा जवाब था 20 मिनट. करण ने एक हलकी सी मुस्कराहट दी और कहा ठीक है, तब तक लेट्स हैव कॉफी विद करण" और नौकर को कॉफी बनने केलिए कहा.
उस कॉफी ने ना सिर्फ़ मुझमें बल्कि मेरी टीम में भी एक नया जोश भर दिया. और यकीन जानिए सच्चाई का फल सिर्फ़ मुझे और मेरी टीम को मीठा मिला बल्कि उस एपिसोड को दर्शकों ने भी बहुत पसंद किया.
ये सही है कि कभी कभी वक्त और हालत कुछ ऐसी साजिश रचते हैं की उस वक्त चाहे घबराहट के मारे आपके पसीने छुट जायें मगर आड़े समय में लिया गया सही फ़ैसला वक्त गुजरने के बाद मीठी यादों के कारवां का एक हिस्सा बन जाता है.

No comments:

Post a Comment