हमारी
फिल्मों के एक्टर्स पेशे से चाहे पेंटर हो, राइटर हो, डांसर-सिंगर
यहाँ तक कि गुंडा, मवाली, बदमाश भी हो
तो उनकी सोचने-समझने, बोलने-चालने की आदतें नोर्मल दिखाई
जाती हैं लेकिन अगर कहीं फिल्म में हवलदार, इंस्पेक्टर या टीचर
का रोल निकल आया तो इनके केरेक्टर का खाका घिसा-पीटा और फिक्स्ड है. पुलिस वाले के
रूप में या तो वो करप्ट होगा या फिर मसखरा और टीचर के रोल में या तो उसे कर्जे में
डूबा हुआ-बेबस, लाचार दो-तीन बेटियों का आदर्शवादी बाप बना
के पेश किया जाता है या फिर वह अव्वल नम्बर का नौटंकीबाज़, बेवकूफ
या भुलक्कड़ दिखाया जाता है. जिस तरह उसके स्टुडेंट्स उसे बेवकूफ बनाते रहते हैं
उसे देख के ये फ़िल्मी टीचर, टीचर कम जोकर या कोमेडियन
ज़्यादा लगते हैं. और सोने पे सुहागा ये कि ये उस देश की फिल्मों के टीचर हैं जहाँ
“गुरुर देवो भव्:” की घुट्टी हमारी परवरिश का
एक अहम हिस्सा होती है. खैर हमारी सामाजिक परम्परा के ओपोसिट ओपोज़ीट
फ़िल्मी परम्परा में यदा-कदा कुछ बदलाव भी देखने को मिलता है. और ऐसे में एक
ऐसे टीचर का किरदार उभर कर सामने आता है जिसकी वजह से हमारे संस्कारों में “गुरुर देवो भव्:” के भाव को इतनी इम्पोर्टेंस मिली
है.
अमिताभ बच्चन [प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी, गुरुकुल प्राचार्य नारायण
शंकर, देबराज सहाय, कोलेज प्रिंसिपल
प्रभाकर आनंद]
कुछ ऐसे ही “ऑन स्क्रीन – टीचर्स” को जानने, परखने और
समझने का सिलसिला शुरू करते हुए जो नाम सबसे पहले मेरे ज़हन में दस्तखत दे रहा है
वो है हिंदी फिल्मों के महानायक “अमिताभ बच्चन” का. करीब डेढ़ सौ से भी ज़्यादा फिल्मों अमिताभ को कई तरह के रोल निभाने
का मौका मिला. वकील, पुलिस इंस्पेक्टर,
नेता, टपोरी, जादूगर, टीचर जैसे अलग-अलग रोल्स निभाते हुए अमिताभ ने पिछले ४० सालों से
इंडस्ट्री में अपने टेलेंट का सिक्का जमाए रखा है. एक टीचर के रोल में अमिताभ सबसे
पहले फिल्म चुपके-चुपके में दिखाई दिए. इस फिल्म में अमिताभ यानि “प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी” हल्की-फुल्की कोमेडी से
भरपूर लेकिन “फ़िल्मी-जोकरिज्म” के
फलसफे से दूर रोमाटिक, इमोशनल और एक ज़िंदादिल इंसान था. यही
वजह है कि आज लगभग ३५ साल बाद भी “प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी” का नाम उनसे वाकिफ सिने-प्रेमियों के चेहरे पर मुस्कान ले आता है.
प्रोफेसर परिमल त्रिपाठी के बाद अब बात
करते हैं फिल्म "मोहब्बतें" के गुरुकुल प्राचार्य नारायण शंकर की. एक
स्ट्रिक्ट, आदर्शवादी,
कम बोलने वाले गुरुकुल-प्राचार्य यानि कोलेज-हेडमास्टर” नारायण शंकर, जिसे अपनी परम्पराओ और असूलों के खिलाफ
जाना बिलकुल गवारा नहीं. इस गुरुकुल प्राचार्य के रूप में भी अमिताभ ने बड़ी
खूबसूरती से ये सन्देश लोगों तक पहुंचया कि टीचिंग कोई बिज़नेस नहीं बल्कि एक
सामाजिक जिम्मेदारियों भरा प्रोफेशन है. फिल्म ‘ब्लैक’
में डेफ एंड ब्लाइंड बच्चों के टीचर देबराज सहाय की भूमिका ने न
सिर्फ अमिताभ के एक्टिंग टेलेंट को बल्कि टीचिंग प्रोफेशन को भी नए सिरे से गढ़ने
में एक अहम भूमिका निभाई.
इसके आलावा फिल्म “कसमें-वादे” में अपने बिगडैल भाई को सुधारने की कोशिश करता प्रोफेसर अमित, फिल्म “देशप्रेमी” में
देशभक्ति का पैगाम देता मास्टर दीनानाथ, फिल्म ‘मेजर साब’ में अपने कैडेट्स को देश के लिए जान की
बाज़ी लगाने की ट्रेनिंग देता मेजर जसबीर सिंह राणा के आलावा अभी हाल में रिलीज
हुई फिल्म “आरक्षण” में जाति-पाती की
सामाजिक बुराइयों के बीच जूझता एक ईमानदार और सिद्धांतवादी प्रिंसिपल प्रभाकर आनंद
भी आइडियल टीचर की कसौटी पर खरे उतारते हैं.
आमिर [तारे जमीं पर]
‘तारे जमीं पर’ फिल्म में इंडस्ट्री के मिस्टर परफेक्शनिस्ट
यानि आमिर खान ने भी एक जिंदादिल मगर अपने सामाजिक
कर्तव्यों के प्रति संजीदा टीचर का रोल अदा किया। “राम शंकर
निकुम्ब” के रूप में आमिर ने हमें एक ऐसे टीचर से रु-बी-रु
होने का मौका दिया जिसका काम बच्चों में सिर्फ किताबी ज्ञान बाँटना ही नहीं बल्कि
उन्हें समझना भी होता है। इस टीचर ने हमें बड़े ही एंटरटेनिंग अंदाज़ में ये समझा
दिया कि हर बच्चा कुछ अलग, कुछ खास होता है.
अनिल कपूर [ब्लैक एंड वाईट]
फिल्म “ब्लैक एंड वाईट” के प्रोफेसर राजन माथुर का किरदार ने भी एक नेकदिल और सुलझे विचारों वाले
टीचर का एक्ज़ामपल सेट किया. इस फिल्म में प्रोफ़ेसर राजन माथुर के रूप में अनिल
कपूर ने इस्लामी-आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे के खिलाफ आवाज़ उठाने का बीड़ा
उठाया.
अभिभट्टाचार्य – [जागृति]
ऑन-स्क्रीन टीचरस के इस सफ़र में अब
थोड़ा पीछे चलते हैं और बात करते हैं फिल्म “जागृति” की. इस फिल्म में टीचर बने “अभिभट्टाचार्य” ने भी स्टूडेंट और टीचर के रिश्ते को
महज़ एक फोर्मेलिटी ना मान कर एक सामाजिक कर्तव्य मनाने की सलाह दी. एक ऐसा
कर्तव्य जिसके ठीक से पालन करने या ना करने पर ना सिर्फ एक देश का बल्कि पूरी
इंसानियत का भविष्य निर्भर करता है. इस फिल्म का एक गीत ‘आओ
बच्चों तुम्हें दिखाए झाँकी हिन्दुस्तान की’ हिंदी अमर गीतों
कि लिस्ट में शामिल होने का गौरव हासिल है.
इसी तरह फिल्म “किनारा” में जितेन्द्र, फिल्म ‘इम्तिहान’
में विनोद खन्ना, फिल्म "सर” में कॉलेज स्टुडेंट्स के फेवरेट “सर” बने नसीरूद्दीन शाह ने भी अपने-अपने तरीके से एक ईमानदार और आदर्शवादी
टीचर के रोल को ऑन-स्क्रीन जीते हुए समाज को एक नई और सही दिशा दिखाने के साथ-साथ
टीचिंग जैसे संजीदा पेशे को एक भद्दा मज़ाक बनने से भी काफी हद तक बचाया है.
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